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विद्युत शरीर और ध्यान : ओशो | How to get liberated from Death and Birth Cycle - Osho

इस शरीर के पीछे समाया हुआ एक विद्युत शरीर है। यह विद्युत शरीर हम अपने साथ लेकर चलते हैं। पिछले जन्म में जब आप समाप्त हुए तो आपकी भौतिक देह गिर गई लेकिन आपका विद्युत शरीर, सूक्ष्म शरीर, एस्ट्रल बॉडी यह जो बिना नाम आप देना चाहे वह आपका मुक्त हुआ। नए घर में वही सूक्ष्म शरीर प्रविष्ट होता है। यह जो सूक्ष्म शरीर है तभी नष्ट होता है जब कोई व्यक्ति समाधि को उपलब्ध हो जाता है और इसलिए सूक्ष्म शरीर के नष्ट हो जाने के बाद जन्म का कोई उपाय नहीं है तो फिर शरीर में प्रवेश नहीं कर सकते शरीर और आपके बीच एक विद्युत की धारा का सेतु है जब वह टूट जाए तो फिर आप नए शरीर में प्रवेश नहीं कर सकते हैं।
साधारण आदमी जब मरता है तो भौतिक शरीर ही मरता है और जो असाधारण आदमी मरता है, ज्ञान को उपलब्ध आदमी मरता है तो उसका विद्युत शरीर मरता है। विद्युत शरीर के मरते ही चेतना मुक्त हो जाती है देह से और नई देहों में प्रवेश बंद हो जाता है। मरते वक्त जिस तरह के ऊर्जा को लेकर चलता है उसी तरह की योनि में प्रवेश करता है या आपने सुना होगा कि वह भी एक लोकोक्ति है और बड़ी सार्थक क्योंकि हजारों-हजारों साल तक जब कुछ लोग किसी बात को मानते हैं तो उसके पीछे कहीं न कहीं कोई तत्व कहीं न कहीं कोई बीज छिपा होता है आपने सुना होगा कि ज्ञानी की मृत्यु कपाल को फोड़कर होती उसकी ऊर्जा मस्तिष्क फूटकर बाहर जाती है। कामी की मृत्यु जनेन्द्रिय से होती है और अलग-अलग मृत्युएँ अलग-अलग तलों से होती है। सभी लोग एक जैसे नहीं मरते, ना तो सभी लोग एक जैसे जीते हैं और न सभी लोग एक जैसे मरते हैं। हम जीने में भी व्यक्तित्व रखते हैं और मरने में भी। सिर्फ इस कारण यह अनुभव में आ जाने के कारण कि ज्ञानी की मृत्यु कपाल को फ़ोड़कर होती है हिंदुओं ने अपने मुर्दे के कपाल फोड़ने शुरू कर दिए, तो बेटा जाकर बाप का सिर तोड़ता है लास्ट में।
यह सिर्फ चिन्ह है। मरे हुए बाप का सिर फोड़ने से कुछ अर्थ नहीं है कि वह तो प्राण जा चुका लेकिन प्रतीक रह गया। क्योंकि परम ज्ञानियों की मृत्यु कपाल को फ़ोड़कर हुई है और वह परम अवस्था को उपलब्ध हुए हैं तो हर बेटा चाहता है उसका पिता भी परम अवस्था को उपलब्ध हो, इसलिए हम कपाल फोड़ते रहे। लेकिन मरे हुए आदमी का कपाल फोड़ने से कोई अर्थ नहीं। और आपके फोड़ने से कोई भी फर्क नहीं पड़ता है। व्यक्ति स्वयं ही अपनी ऊर्जा को ऊपर उठाकर जब कपाल तक ले आता है तभी कपाल फोड़कर मृत्यु होती है। और जिस केंद्र से मृत्यु होती है शरीर में जिस केंद्र से प्राण बाहर होते हैं उससे पता चलता है कि आप किस योनि में जाएंगे। यह योनियों का पूरा विज्ञान है। योग कहता है 101 हृदय में नाड़ियाँ हैं।100 नाड़ियाँ संसार में ले जाती है और एक नाड़ी मोक्ष में ले जाती है।
वे जो 100 नाड़ियाँ हैं 100 रास्ते हैं। और उन 100 नाडियों पर विभिन्न - विभिन्न नाडियों पर विभिन्न योनियों की यात्रा हो जाती है। कौन व्यक्ति किस नाड़ी के द्वार से जीवन के बाहर जा रहा है, इस शरीर के बाहर जा रहा है उससे ही तय हो जाता है कि वह किस योनि में प्रवेश करेगा। सिर्फ एक आयोनी नाड़ी है जिससे फिर संसार में कोई प्रवेश नहीं होता जीवन उर्ध्वगमन को उपलब्ध हो जाता है। उस एक नाड़ी का नाम सुसुम्ना है। और कैसे ऊर्जा जीवन की उस नाड़ी में प्रवेश करें यही पूरे योग का सार है, कैसे जीवन ऊर्जा ऊपर उठे, और उस एक नाड़ी में प्रविष्ट कर जाए, जहां से संसार से संबंध छूट जाता है।
साधारणतः हमारी ऊर्जा काम केंद्र पर इकट्ठी है। सेक्स सेंटर पर इकट्ठी है। प्रकृति को वहीं जरूरत है, प्रकृति को आपकी बहुत चिंता नहीं है। आपकी सतत धारा न टूट जाए इसकी ज्यादा चिंता है आप मिटे या बनें , यह बड़ा सवाल नहीं है लेकिन आपका बच्चा, बच्चों के बच्चे होते रहे, प्रकृति संतति में उत्सुक है व्यक्तियों में नहीं। धारा चलती रहे इसलिए काम का इतना प्रभाव है कि आप लाख उपाय करते हैं तो भी काम वासना पकड़ लेती क्योंकि प्रकृति इतना बल देती है उस केंद्र पर कि आप बिल्कुल अवस हो जाते हैं , काम आप को पकड़ लेता, वासना आपको घेर लेती है। आपकी सारी ऊर्जा काम केंद्र पर इकट्ठी और उर्जा का एक ही बहाव है कि वह है कामवासना में। यही ऊर्जा ऊपर की तरफ लानी है। इसे ही ऊपर उठाना है। ये दो छोर हैं। मस्तिष्क जिसे हम सहस्त्रार कहते और काम केंद्र, जिसे हम मूलाधार है यह दो छोर हैं।
मूलाधार में ऊर्जा इकट्ठी है और वहां से उसे सहस्त्रार तक लाना है और बीच कि जिस नाड़ी से यात्रा होगी और सुसुम्ना है, जिससे ऊर्जा ऊपर और ऊपर और ऊपर उठेगी। यह बिलकुल ही वैज्ञानिक घटना है, ऊर्जा का ऊपर उठना, और इस उर्जा के ऊपर उठते ही व्यक्ति के व्यक्तित्व में रूपांतरण होने शुरू हो जाते हैं जिस जगह ऊर्जा होती है वैसा ही व्यक्तित्व बदल जाता है। इसे हम ऐसा समझे कि एक छोटा बच्चा है अभी उसे कामवासना का कुछ भी पता नहीं है। कामवासना उसमें छिपी है लेकिन अभी काम का केंद्र सक्रिय नहीं हुआ है। कि जैसे ही वह प्रौढ़ होगा काम की दृष्टि से काम का केंद्र सक्रिय होगा उसका सारा मन सारा व्यक्तित्व सारा आचरण काम वासना से भर जाएगा। सोचते, उठते-बैठते, स्वप्न देखते कामवासना उसे घेर लेगी। सब तरफ एक ही रस रह जाए, क्या हुआ यह सारे व्यक्तित्व में इतना रूपांतरण अचानक? इसलिए 14 वर्ष से लेकर 18 वर्ष के बीच बच्चे बड़ी बेचैनी और तकलीफ में पड़ जाते हैं। उनकी खुद की भी समझ में नहीं आता कि क्या हो रहा है। यह उम्र 14 से 18 के बीच की बड़ी बेचैनी की उम्र है। न वे किसी को कह सकते, न कोई उन्हें कुछ बताता और उनके भीतर रहते रूपांतरण हो रहे हैं और उनका सारा चित्त कामवासना से इस बुरी तरह घिर गया है, कि कुछ और उन्हें सूझता भी नहीं, कुछ और सूझ नहीं सकता।
यह जो घटना घटती है, यह घटना घटती है काम केंद्र के सक्रिय होने से। जिस दिन सहस्त्रार सक्रिय होता है उस दिन फिर ऐसी घटना घटती है। उस दिन व्यक्ति इसी तरह परमात्मा से भर जाता है जिससे काम केंद्र के सक्रिय होने पर कामना से वासना से गिर जाता है। और जिस दिन सहस्त्रार पर प्रकट होती है ऊर्जा , उस दिन सब तरफ से सिवाए परमात्मा के कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता है। काम केंद्र पर प्रकृति पकड़ लेती है सहस्त्रार पर परमात्मा पकड़ लेता है। कैसे यह ऊर्जा ऊपर की तरफ जाए यही सवाल है। पहली तो बात, कि जब भी मन में काम वासना उठे, तब आप आंख बंद करके, सारे काम यंत्र को ऊपर की तरफ खींच लेना है। जिससे ऊर्जा नीचे जा रहे हैं सारे काम यंत्र को आप ऊपर की तरफ सिकोड़ लेना , कॉन्ट्रैक्ट कर लेंना और सिर्फ एक ही धारणा भीतर करना कि यह ऊर्जा जो काम केंद्र को प्रभावित कर रही ऊपर की तरफ बह रही है, उठ रही है। थोड़े ही दिन प्रयोग करके आप चकित हो जाएंगे कि जब भी काम वासना उठे तभी अगर आप काम यंत्र को पूरा का पूरा ऊपर की तरफ खींच लें भीतर सिकोड़ लें, तत्क्षण काम केंद्र रिक्त हो जायेगा ऊर्जा से। और आप पाएंगे कि आपकी रीढ़ में कोई गर्म तत्व ऊपर की तरफ उठ रहा है। यह स्पष्ट अनुभव होगा कि कोई गर्मी ऊपर की तरफ बह रही है कभी-कभी तो गर्मी इतनी साफ होती है कि दूसरा व्यक्ति भी आपकी रीढ़ छुए तो कह सकता है कि कुछ आग ऊपर की तरफ जा रही है।
शीर्षासन का यही उपयोग है कि जब कामवासना उठे तो आप जोर से सारे यंत्र को ऊपर की तरफ से सिकोड़ के अगर सिर के बल खड़े हो जाएं तो काम ऊर्जा की यात्रा आसान हो जाएगी, क्योंकि कोई भी ऊर्जा नीचे की तरफ बहना सुगम पाती, सब पानी नीचे की तरफ बहता है। अगर आप शीर्षासन में खड़े हों , और काम ऊर्जा को ऊपर की तरफ खींच रहे हो अर्थात् शीर्षासन में खड़े होकर नीचे की तरफ खींच रहे हो, तो सिर की तरफ ऊर्जा बहने लगेगी।
शीर्षासन सिर्फ व्यायाम नहीं है, शीर्षासन ब्रह्मचारी का गहरा प्रयोग है। और अगर आप काम ऊर्जा के साथ उसे जोड़ सकें तो आप थोड़े ही दिन में पाएंगे कि आपकी मस्तिष्क में कुछ नई घटना घट रही है। कोई प्रवाह आ गया है,जैसे कोई बाढ़ आ गई है। भीतर एक एक रज एक एक सनायु कंप रहा है कम्पित हो रहा है। भीतर एक गुनगुनाहट मस्तिष्क में सुनाई पड़नी शुरू हो जाए, जिससे कोई सन्नाटा भीतर बज रहा हो जैसे बहुत सी मधुमक्खियां भीतर शोर कर रही है। ये शोर भीतर ये झनझनाहट मस्तिष्क में बड़ी शुभ खबर है। यह इस बात की खबर है कि ऊर्जा मस्तिष्क में आ गई है और इस ऊर्जा को मस्तिष्क तक लाना ही आपका काम है सहस्त्रार तो अपने आप खिलना शुरू हो जाएगा जैसे ही उस कली को शक्ति मिलनी शुरू हुई कि वह कली खिलनी शुरू हो जाए, उसके खिलते ही अमृत की वर्षा हो जाए, आनंद की वर्षा हो जाए, जो कभी नहीं जाना ऐसा रस जो कभी नहीं जाना, ऐसी मधुर अनुभूति जो कभी नहीं जानी, ऐसी अलौकिक प्रतिती होनी शुरू हो जाती फिर आप रहते हैं इसी जमीन में है, चलते इस जमीन पर नहीं। पैर यही पड़ते हैं बस दूसरों को दिखाई पड़ते हैं आपके पैर फिर इस जमींन पर नहीं पड़ते हैं। आप फिर आकाश में जैसे उड़ते हैं। एकदम सब हल्का हो जाता है जमीन की जो कशिश है, जो ग्रेविटेशन है वह खो जाता है। वह जो कथाएं हैं कि योगी जमीन से उठ जाता है, वह कभी-कभी सच में है, लेकिन एक बात निश्चित सच जिसकी भी ऊर्जा सहस्त्रार में प्रवेश करती है, सुसुम्ना के द्वार से होकर सहस्त्रार में चली जाती है। वह अचानक पाता है कि जमीन से उठ गया है अगर आप ध्यान करते हुए बैठे हैं और ऐसी घटना घटेगी तो आप आंख बंद करें आप पाएंगे कि आप जमीन से कम से कम चार बलिस्त ऊपर उठ गए हैं। आँख खोल के शायद आप पाएं कि जमीन पर बैठे हुए है उठे नहीं है। क्योंकि जो उठ रहा है शरीर को भीतर का ऊर्जा शरीर है। लेकिन कभी-कभी यह प्रवाह इतना तेज होता है कि भौतिक शरीर भी उसके साथ ऊपर उठ जाता है। पर यह कभी-कभी होता है। लेकिन ऊर्जा शरीर तो निरंतर ऊपर उठता है जिसकी भी ऊर्जा भीतर प्रवेश करती है।
यूरोप में एक महिला है का जो चार फीट ऊंचा उठ जाती है सिर्फ शांत बैठ के। उसका हजारों चित्र दिए गए और सब तरह के वैज्ञानिक प्रयोग किए गए और उनकी समझ से बाहर है कि क्या हो रहा है। क्योंकि जमीन के ऊपर उठना बड़ी अदभुत बात है क्योंकि जमीन खींच रही है पूरी ताकत से। ग्रेविटेशन का नियम उसको तोड़ना नहीं है। जब उस महिला को पूछा गया कि वह करती क्या तो उसने कहा कि मैं कुछ करती नहीं। बस मैं एकदम शांत और शांत और शांत होती चली जाती हूँ। जैसे ही एक शांति का क्षण आता है जब कुछ भी विचार भीतर नहीं रह जाते अचानक में पाती हूँ ऊपर उठ गई। वह चार फीट ऊपर चली जाती है। सैंकड़ों लोग जमीन पर सैकड़ों बार ऊपर उठे थे हैं। लेकिन इस शरीर के ऊपर होने का कोई बड़ा मूल्य नहीं है वह एक तमाशा है। पर भीतर का शरीर ऊपर उठ जाए उसका बड़ा मूल्य है। क्योंकि उसके ऊपर उठते ही जमीन के जो जो आप पर प्रभाव थे वह नष्ट हो जाते जमीन के प्रभाव गहरे हैं। जैसा मैंने आपसे कहा आपका सारा शरीर हार्मोन, रसायन तत्वों से बना हुआ है। जमीन से सारे तत्व आपको मिले हैं । जमीन आपको प्रतिपल नीचे खींच रही है।
जमीन सिर्फ चीजों को ही नीचे नहीं खींच रही है, आपके व्यक्तित्व को, आपके मन को भी नीचे खींच रही है। जिस दिन आप की ऊर्जा भीतर उठ जाती आप एक गुब्बारे की तरह जाते हो, आप इतने हल्के हो जाते है कि जमीन आपको खींच नहीं सकते हैं। कि ग्रेविटेशन जैसे एक नियम है ,ऐसा ही योग में एक नियम है लैविटेशन।
गुरुत्वाकर्षण नीचे खींचता है, एक और आकाशीय आकर्षण जो ऊपर खींचता है। लेकिन आपके भीतर की घटना पर निर्भर करता है कि आप ऊपर से प्रभावित होंगे कि नीचे से। अगर आपकी ऊर्जा नीचे के केंद्र पर है तो नीचे से प्रभावित होंगे ,आपकी ऊर्जा ऊपर के केंद्र पर है तो ऊपर से प्रभावित होंगे। जब भी काम वासना जगे, तब आंख बंद करके काम यंत्र को ऊपर सिकोड़ लेना और धारणा करना की शक्ति ऊपर की तरफ जा रही है। तत्क्षण काम केंद्र से तिल हो जाएगा कि रीड में कोई चीज सरकती हुई जैसे बहुत चीटियां पर की तरफ जा रही हो या कोई उत्तप्त चीज ऊपर की तरफ बह रही हो कोई लावा पिघल के ऊपर की तरफ बह रहा हो यह प्रतीत होगा। जैसे यह प्रतीत हो खुश होना, आनंदित होना इस अहोभाव से स्वीकार करना और इसे ऊपर खींचने के जितने भी प्रयोग कर सके करना। अगर शीर्षासन ना बन सके, तो भी आदमी इतना कर सकता है कि किसी स्लोप पर ,ढाल पर लेट जाए सिर नीचे की तरफ कर के या पलंग ऐसा बना लें कि नीचे के दोनों पैर ऊँचें हो सिर की तरफ के पैर नीचे हों. और पलंग पर लेट जाएँ। और सिर्फ भाव करें ऊर्जा ऊपर आ रही है। जैसे-जैसे ऊर्जा ऊपर आएगी विचार कम होते जायेंगे या विचार कम होते हैं तो ऊर्जा ऊपर आने लगती है, दोनों संयुक्त घटना है।
हठयोग ऊर्जा को ऊपर लाने की कोशिश करता है राज योग विचार से मुक्त करने की कोशिश करता दोनों एक ही दिशा में यात्रा करते हैं। हठयोग की फिक्र है कि ऊर्जा ऊपर आ जाए इसलिए शीर्षासन है ,मुद्राएं हैं जिनके द्वारा ऊर्जा को ऊपर खींचा जाता है, बंध हैं जिनसे ऊर्जा ऊपर की तरफ खींचा जाता है । हठयोग फिक्र नहीं करता विचार की, वह कहता ऊर्जा ऊपर आ जाएगी विचार अपने से ही नष्ट हो जाएंगे, राज योग ऊर्जा की फिक्र नहीं करता वह कहता है कि विचार शांत हो जाए ऊर्जा अपने से ऊपर आ जायगी। दोनों संयुक्त घटनाएं है कहीं से भी शुरू किया जा सकता है।अगर आपकी आस्था शरीर में बहुत ज्यादा हो तो हठयोग आपके लिए मार्ग और अगर मन में आपकी आस्था जाता हो तो राज योग आपके लिए मार्ग है। और दो के अतिरिक्त कोई मार्ग है नहीं है

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