भस्त्रिका का शब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसमें लोहार की धौंकनी की तरह आवाज करते हुए वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर ले जाते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर फेंकते हैं।
प्रक्रिया : एक आरामदायक आसन में बैठें| दोनों नासिका से सांस लें, जब, फेफेड़ें पूरे भर जाएँ और डायाफ्राम फैला हो, फिर धीरे धीरे साँस बाहर छोड़ें
अवधि : कम से कम 2 मिनट 5 अधिकतम मिनट
लाभ : हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क, अवसाद, माइग्रेन, लकवा, तंत्रिका तंत्र, आभा, तेज, मोटापा, कब्ज, गैस्ट्रिक, अम्लता, Croesus (यकृत), हेपेटाइटिस बी, गर्भाशय, मधुमेह, पेट की समस्याओं, कोलेस्ट्रॉल, एलर्जी समस्याओं, अस्थमा, खर्राटे ले, एकाग्रता, और यहां तक कि कैंसर और एड्स
भस्त्रिका प्राणायाम - विस्त्रित वर्णन
- सुखासन सिद्धासन,पद्मासन,वज्रासन अथवा किसी एक आरामदायक आसन में बैठें|
- दोनों नासिका से सांस लें, जब, फेफेड़ें पूरे भर जाएँ और डायाफ्राम फैला हो, फिर धीरे धीरे साँस बाहर छोड़ें।
- फिर धीरे से साँस बाहर निकालें ।
- ध्यान रहे कि श्वास लेते समय पेट फूलना नहीं चाहिए।
नाक से लंबी सांस फेफडो मे ही भरे, फिर लंबी सांस फेफडो से ही छोडें| सांस लेते और छोडते समय एकसा दबाव बना रहे| हमें हमारी गलतीयाँ सुधारनी है, एक तो हम पुरी सांस नही लेते; और दुसरा हमारी सांस पेट में चाली जाती है| देखिये हमारे शरीर में दो रास्ते है, एक ( नाक, श्वसन नलिका, फेफडे), और दूसरा( मुँह्, अन्ननलिका, पेट्)| जैसे फेफडोमें हवा शुद्ध करने की प्रणली है,वैसे पेट में नही है| उसीके कारण हमारे शरीर में आँक्सीजन की कमी मेहसूस होती है| और उसेके कारण हमारे शरीर में रोग जडते है| उसी गलती को हमें सुधारना है|जैसे की कुछ पाने की खुशि होति है,वैसे हि खुशि हमे प्राणायाम करते समय होनि चाहिये|और क्यो न हो सारि जिन्दगि का स्वास्थ आपको मील रहा है| आप के पन्चविध प्राण सशक्त हो रहे है, हमारे शरीर की सभि प्रणालिया सशक्त हो रही है|
अवधि : इस प्राणायाम को सामान्यत: 3-5 मिनट तक करना चाहिए। भस्त्रिका प्राणायाम में श्वास को अंदर भरते हुए मन में विचार करना चाहिए कि ब्रह्मांड में विद्यमान दिव्य शक्तियों से ओत-प्रोत हो रहा हूं। इस प्रकार दिव्य संकल्प के साथ किया हुआ प्राणायाम विशेष लाभप्रद होता है
लाभ:
- इस प्राणायाम से शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है जिसके कारण यह शरीर के सभी अंगों से दूषित पदार्थों को दूर करता है ।
- भस्त्रिका प्राणायाम करते समय हमारा डायाफ्राम तेजी से काम करता है, जिससे पेट के अंग मजबूत होकर सुचारु रूप से कार्य करते हैं और हमारी पाचन शक्ति भी बढ़ती है ।
- मस्तिष्क से संबंधित सभी विकारों को मिटाने के लिए भी यह लाभदायक है ।
- आँख, कान और नाक के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी यह प्राणायाम लाभदायक है ।
- वात, पित्त और कफ के दोष दूर होते हैं तथा पाचन संस्थान, लीवर और किडनी की अच्छे से एक्सरसाइज हो जाती है।
- मोटापा, दमा, टीबी और श्वासों के रोग दूर हो जाते हैं। स्नायुओं से संबंधित सभी रोगों में यह लाभदायक माना गया है।
- पर्किनसन,प्यारालेसिस,लुलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बंधित सभी व्यधिओं को मिटाने के लिये |
- भगवान से नाता जोडने के लिये |
- सर्दी-जुकाम, एलर्जी, श्वास रोग, पुराना नजला, साइनस आदि समस्त कफ रोग दूर होते हैं |
- भस्त्रिका प्राणायाम फेफडों को सशक्त बनाने के लिये लाभदायक है | फेफड़े सबल बनते हैं तथा हृदय व मस्तिष्क को भी शुद्ध प्राण वायु मिलने से आरोग्य लाभ होता है ।
- थायराइड व टॉन्सिल जैसे गले के सभी रोग दूर होते हैं ।
- त्रिदोष सम होते हैं। रक्त परिशुद्ध होता है तथा शरीर के विषाक्त, विजातीय द्रव्यों को निष्कासन होता है।
- प्राण व मन स्थिर होता है। प्राणोत्थान व कुंडलिनी जागरण में सहायक है।
- भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें ।
- भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रात: खुली और साफ हवा में करना चाहिए ।
- क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए । प्राणायाम करते समय शरीर को न झटका दें और ना ही किसी तरह से शरीर हिलाएँ । श्वास लेने और श्वास छोड़ने का समय बराबर रखें ।
- जिनको उच्च रक्तचाप व हृदय रोग हो उनहें मंद गति से ही भस्त्रिका करना चाहिए।
- इस प्राणायाम को करते समय जब श्वास को अंदर भरें तब पेट को नहीं फुलाना चाहिए।
- श्वास डायाफार्म तक भरें, इससे पेट नहीं फूलेगा, पसलियों तक छाती ही फूलेगी।
- कफ की अधिकता या साइनस आदि रोगों के कारण जिनके दोनों नासा छिद्र ठीक से खुले हुए नहीं होते उन लोगों को पहले दाएं स्वर को बंद करके बाएं से रेचक व पूरक करना चाहिए। फिर बाएं को बंद करके दाएं से यथाशक्ति मंद, माध्यम या तीव्र गति से रेचक व पूरक करना चाहिए। फिर अंत में दोनों स्वरों इड़ा व पिंगला से रेचक व पूरक करते हुए भस्त्रिका प्राणायाम करें।
- प्राणायाम की क्रियाओं को करते समय आंखों को बंद रखें और मन में प्रत्येक श्वास-प्रश्वास के साथ ओउम का मानसिक रूप से चिंतन व मनन करना चाहिए।
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